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  • कठोपनिषद

    Posted on July 9, 2016

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    प पू डॉक्टरकाकांनी दहा प्रमुख उपनिषदांवर मराठीत विवरण केले आहे. मूळ संस्कृत संहिता, त्यावर मराठीत ओवीबद्ध टीका व त्या ओव्यांचा सुलभ अर्थ असे या रचनेचे स्वरूप आहे. प पू काकांनी काठ, केन, बृहदारण्यक, इशावास्या, मांडुक्या, प्रश्न, मुंडक, तैत्तरीय आदि अनेक उपनिषदांवर ह्या प्रकारे ग्रंथ लिहिले आहेत व त्या सर्व वेदांताचा अभ्यास करणार्‍यांमध्ये अत्यंत मान्यताप्राप्त आहेत.

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    भूमिका

    ओम नमो परात्परा | ओम नमो विश्वंभरा |

    नमो तयाचे सेवकवरा | गुरुस्वरूपा || १ ||

    संप्रदाय असे शुद्ध | मो जो अविद्याविद्ध |

    असतां सर्वपरी बद्ध | लेखकू जाहलो || २ ||

    नाथ, ज्ञानदेव, समर्थ | त्यांचे उचलोनि शब्द अर्थ |

    इया काठकींचा भावार्थ | शोधू पाहे मी || ३ ||

    आचार्य रेखा नोलांडिता | सिद्धान्त सर्वस्वी पाहता |

    काठक आणिले प्रकृता | ओवीबद्ध || ४ ||

    संतशब्द परावाणी | माझे शब्द अडाणी |

    हे तो जाणता जाणी | न बोलताची || ५ ||

    संतसूर्य आयता प्रकाशे | आरिसा घेउनि कवडसे |

    कौतुके मी पाडितसे | बाळकापरी || ६ ||

    येथ मुमुक्षु नचिकेता | यमदेव सद्गुरू तत्वता |

    आचार्य जैसा श्रेष्ठ वक्ता | भगवत स्वरूप || ७ ||

    ग्रंथ निवृत्ती प्रधान | श्रेय प्रेयादि ज्ञान |

    मुमुक्षूसी समाधान | अतीव असे || ८ ||

    येथ सकल ब्रह्मज्ञान | लक्षण तैसेची साधन |

    रथरूपका विशेषपण | इही ग्रंथी || ९ ||

    मी आपणचि जेवू नेणे || आणीकां भरवी बळे कोणे |

    हे तो बुद्धिदाता जाणे | अंतर्यामी || १० ||

    नाही काव्य अलंकार | गोडी गेयतेचा विचार |

    आचार्य शब्द आधार | सोडिला नाही || ११ ||

    येथे जे जे दोष | ते ते माझेचि नि:शेष |

    आणि जे जे निर्दोष | ते आचार्यांचे || १२ ||


    हे सर्व लेख प पू डाँ श्रीकृष्ण द देशमुख लिखित असुन साधकांनी केवळ व्यक्तीगत अभ्यासाकरीता त्यांचा वापर करावा.

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