भूमिका
ओम नमो परात्परा | ओम नमो विश्वंभरा |
नमो तयाचे सेवकवरा | गुरुस्वरूपा || १ ||
संप्रदाय असे शुद्ध | मो जो अविद्याविद्ध |
असतां सर्वपरी बद्ध | लेखकू जाहलो || २ ||
नाथ, ज्ञानदेव, समर्थ | त्यांचे उचलोनि शब्द अर्थ |
इया काठकींचा भावार्थ | शोधू पाहे मी || ३ ||
आचार्य रेखा नोलांडिता | सिद्धान्त सर्वस्वी पाहता |
काठक आणिले प्रकृता | ओवीबद्ध || ४ ||
संतशब्द परावाणी | माझे शब्द अडाणी |
हे तो जाणता जाणी | न बोलताची || ५ ||
संतसूर्य आयता प्रकाशे | आरिसा घेउनि कवडसे |
कौतुके मी पाडितसे | बाळकापरी || ६ ||
येथ मुमुक्षु नचिकेता | यमदेव सद्गुरू तत्वता |
आचार्य जैसा श्रेष्ठ वक्ता | भगवत स्वरूप || ७ ||
ग्रंथ निवृत्ती प्रधान | श्रेय प्रेयादि ज्ञान |
मुमुक्षूसी समाधान | अतीव असे || ८ ||
येथ सकल ब्रह्मज्ञान | लक्षण तैसेची साधन |
रथरूपका विशेषपण | इही ग्रंथी || ९ ||
मी आपणचि जेवू नेणे || आणीकां भरवी बळे कोणे |
हे तो बुद्धिदाता जाणे | अंतर्यामी || १० ||
नाही काव्य अलंकार | गोडी गेयतेचा विचार |
आचार्य शब्द आधार | सोडिला नाही || ११ ||
येथे जे जे दोष | ते ते माझेचि नि:शेष |
आणि जे जे निर्दोष | ते आचार्यांचे || १२ ||